Share

नई दिल्ली।  गुणवत्ता युक्त स्वास्थ्य सेवाओं,टीकाकरण और संक्रमण से बचाव की पर्याप्त सुविधाओं
के अभाव तथा जन्मजात शारीरिक दोष के कारण भारत में हर साल 11.5 लाख बच्चे पांच वर्ष की आयु पूरी करने से पहले ही काल के गाल में समा जाते हैं।
संयुक्त राष्ट्र बाल कोष ( यूनीसेफ) की रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया में भारत में शिशु मृत्यु दर 58 फीसदी से ज्यादा है। भारत में पांच साल से कम आयु वर्ग के 11.5 लाख शिशुओं की हर साल मौत हो जाती है। इनमें से नवजात शिशुओं की संख्या 6.60 लाख और तुरंत जन्मे बच्चों की संख्या 0.748 होती है।
यूनीसेफ की यह रिपोर्ट उत्तर प्रदेश, झारखंड,राजस्थान और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में हाल के दिनों में अपर्याप्त चिकित्सा सुविधाओं और अस्पतालों की कथित लापरवाही के कारण नवजात शिशुओं की बड़ी संख्या में हुई मौत के संदर्भ में काफी अहम है।
यूनीसेफ का कहना है कि गर्भवती महिलाओं और बच्चाें की मृत्युदर घटाने के लिए पिछले 20 सालों के दौरान
नीतिगत स्तर पर काफी प्रयास किए गए हैं जिसके बेहतर नतीजे भी सामने आए हैं लेकिन नवजात शिशुओं के लिए अनिवार्य स्वास्थ्य सेवाओं का पहलू उपेक्षित रह गया है और यही वजह है कि शिशुओं की मौत के मामलों में लगातार इजाफा हो रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन और तथा एनआरएचएम कार्यक्रम के तहत इस दिशा में सशक्त पहल जरूर की है जिसमें यूनीसेफ भी सहयोगी की भूमिका में है लेकिन इस प्रयास में जितने आर्थिक संसाधनों की दरकार है वे पर्याप्त नहीं है इसके लिए जनभागीदारी को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
यूनीसेफ का कहना है कि शिशुओं की अकाल मौत के ज्यादातर मामले निम्न आय वर्ग के परिवारों में होते हैं जहां कुपोषण ,शारीरिक दोष और मलिन वातावरण की समस्या बच्चे के जन्म से पहले ही मौजूद रहती है। ऐसे में अकेले सरकार के लिए इन स्थितियों को सुधारना मुमकिन नहीं है, इसके लिए समाज के हर जिम्मेदार व्यक्ति को सहयोगी की भूमिका में अाना होगा। 

About The Author

Share

You cannot copy content of this page