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नई दिल्ली।  केन्द्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने जन-धन योजना को देश में अब तक का सबसे बड़ा वित्तीय समावेशन अभियान करार देते हुए आज कहा कि इससे पहले देश के करीब 42 फीसदी परिवार बैंकिंग सेवाअों से वंचित थे जबकि योजना के शुरु होने के महज तीन साल के भीतर आज देश के 99.99 फीसदी परिवारों के पास कम से कम एक बैंक खाता मौजूद है।
श्री जेटली यहां ‘वित्तीय समावेशन’ पर आयोजित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि जन-धन योजना ने वित्तीय समावेशन का जो काम किया है उसका असर आज दिखाई दे रहा है। योजना के शुरु होने के तीन साल के भीतर 30 करोड़ परिवारों ने जन धन खाते खुलवा लिए। सितंबर 2014 में योजना के शुरु होने के तीन महीने बाद 76.81 प्रतिशत बैंक खाते जीराे बैंलेस वाले थे जिनमें कोई रकम जमा नहीं की गयी थी लेकिन आज ऐसे खातों की संख्या घटकर 20 फीसदी रह गयी है। उन्होंने कहा कि इन खातों को सिर्फ खोलना ही काफी नहीं है बल्कि इन्हें संचालित करने की भी जरुरत है। इस बात का ध्यान रखते हुए ही केन्द्र और राज्य सरकारों की कई लाभ योजनाओं की राशि सीधे लाभार्थियों के जन-धन खाते में जमा करायी जा रही है।
उन्होंने कहा कि जन-धन खातों को संचालित करने के लिए चौतरफा पहल करने की जरुरत है। उन्होंने सरकारी संसाधनों को जरुरतमंदों के लिए लक्षित करने की आवश्यकता बताते हुए कहा कि पिछले तीन वर्षों में ऐसे मुद्दों पर खास ध्यान दिया गया है जिन्हें पहले मुद्दा माना ही नहीं जाता था।
वित्त मंत्री ने इस अवसर पर सरकारी योजनाओं के लाभ के लिए आधार की अनिवार्यता को लेकर उठे विवाद पर कहा कि उन्हें इस बात का पूरा विश्वास है कि आधार कानून संवैधानिकता की परीक्षा में खरा उतरेगा। उन्होंने कहा कि आधार से क्या-क्या हो सकता है यह तब नहीं समझा जा सका था जब इसे लाया गया था लेकिन आज इसकी अहमियत समझ में आ रही है। दरअसल यह लगातार विकसित होने वाला एक आइडिया है जो हर लिहाज से सबके लिए फायदेमंद होगा।
श्री जेटली ने इस मौके पर नोटबंदी के फायदों का एक बार फिर से जिक्र करते हुए कहा कि नोटबंदी से अनौपचारिक अर्थव्यवस्था औपचारिक बन गई है और इससे न केवल कर आधार बढ़ाने में मदद मिली है बल्कि नगदी लेन-देन में भी कमी आई है। नोटबंदी के बाद डिजिटल लेन-देन को बढ़ावा दिया गया था जिसका असर अब दिखने लगा है।

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