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बीकानेर। पितृपक्ष श्राद्ध के तर्पण सहित विविध अनुष्ठान पूर्णिमा शुक्रवार को शुरू हुए। पूर्णिमा को दिवंगत हुए परिजनों का श्राद्ध किया गया। शुक्रवार से ही हर्षोलाव तालाब, संसोसाव, धरणीधर तालाब सहित विविध स्थानों पर 15 दिवसीय पितृ तर्पण के कार्यक्रम शुरू हुए।

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शहर में जस्सूसर गेट के अंदर, दाऊजी मंदिर मार्ग, दम्माणी चैक, बिनानी चैक, मोहता चैक, गंगाशहर मुख्य बाजार सहित अनेक स्थानों पर रियायती मूल्य पर जलेबी, पंधारी, गाळ के लड्डू, मोती पाक, गुलाब जामुन आदि मिठाई,

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नमकीन की अस्थाई दुकानें शुरू हो गई। कई स्थाई दुकानदारों ने भी श्राद्ध के मौके पर ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए टैंट आदि लगवाएं है।

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हर्षोंल्लाव तालाब परिसर में लगातार 40 वें वर्ष 92 वर्षीय पंडित नथमल पुरोहित व उनके शिष्य गोपाल पुरोहित ने शुक्रवार से तर्पण का विशेष अनुष्ठान शुरू करवाया। सुबह पांच बजे से सात बजे तक तक तीन चरणों में चलने वाले तर्पण में शहर के विभिन्न मोहल्लों के श्रद्धालु वैदिक मंत्रोच्चारण से अपने पितृजनों को तर्पण कर रहे है। आयोजन से जुड़े फूलसा सेवग ने बताया कि श्रद्धालुओं के लिए डाभ आदि की व्यवस्था तर्पण स्थल पर की गई है। अनुष्ठान 30 सितम्बर को हवन के बाद संपन्न होगा। पंडित नथमल पुरोहित ने बताया कि शास़्त्रों की मान्यता है कि श्राद्धपक्ष में पितृगण 15 दिनों के लिए में पृथ्वी पर आते हैं। पितृपक्ष के दौरान पितृ अपने परिजनों के आस-पास रहते हैं इसलिए इन दिनों कोई भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए, जिससे पितृगण नाराज हों। पितरों को खुश रखने, घर परिवार में सुख, शांति व समृद्धि प्रदान करने के लिए नियमित तर्पण करना चाहिए ।

श्राद्ध पक्ष पर हमें क्या करना चाहिए….
पितृपक्ष में द्वार पर आने वाले किसी भी जीव-जंतु को मारना नहीं चाहिए बल्कि उनको भोजन कराना चाहिए। हर दिन भोजन बनने के बाद एक हिस्सा निकालकर गाय, कुत्ते व कौआ को देना चाहिए। मान्यता है कि इन्हें दिया गया भोजन सीधे पितरों को प्राप्त हो जाता है। शाम के समय घर के द्वार पर एक दीपक जलाकर पितृगणों का ध्यान करना चाहिए। जिस तिथि को जिसके पूर्वज गमन करते हैं, उसी तिथि को उनका श्राद्ध करना चाहिए। इस पक्ष में जो लोग अपने पितरों को जल देते हैं तथा उनकी मृत्युतिथि पर श्राद्ध करते हैं, उनके समस्त मनोरथ पूर्ण होते हैं। पंडित पुरोहित ने बताया कि आश्विन कृष्ण प्रतिपदा तिथि को नाना-नानी के श्राद्ध के लिए सही बताया गया है। इस तिथि को श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। यदि नाना-नानी के परिवार में कोई श्राद्ध करने वाला न हो और उनकी मृत्युतिथि याद न हो, तो आप इस दिन उनका श्राद्ध कर सकते हैं। पंचमीरू जिनकी मृत्यु अविवाहित स्थिति में हुई हो, उनका श्राद्ध इस तिथि को किया जाना चाहिए। नवमीरू सौभाग्यवती यानि पति के रहते ही जिनकी मृत्यु हो गई हो, उन स्त्रियों का श्राद्ध नवमी को किया जाता है। यह तिथि माता के श्राद्ध के लिए भी उत्तम मानी गई है। इसलिए इसे मातृ नवमी भी कहते हैं। मान्यता है कि इस तिथि पर श्राद्ध कर्म करने से कुल की सभी दिवंगत महिलाओं का श्राद्ध हो जाता है। एकादशी और द्वादशी एकादशी में वैष्णव संन्यासी का श्राद्ध करते हैं। अर्थात् इस तिथि को उन लोगों का श्राद्ध किए जाने का विधान है, जिन्होंने संन्यास लिया हो।चतुर्दशी तिथि में शस्त्रा, आत्महत्या, विष और दुर्घटना यानि जिनकी अकाल मृत्यु हुई हो उनका श्राद्ध किया जाता है जबकि बच्चों का श्राद्ध कृष्ण पक्ष की त्रायोदशी तिथि को करने के लिए कहा गया है। सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या को किसी कारण से पितृपक्ष की अन्य तिथियों पर पितरों का श्राद्ध करने से चूक गए हैं या पितरों की तिथि याद नहीं है, तो इस तिथि पर सभी पितरों का श्राद्ध किया जा सकता है। शास्त्र अनुसार, इस दिन श्राद्ध करने से कुल के सभी पितरों का श्राद्ध हो जाता है। यही नहीं जिनका मरने पर संस्कार नहीं हुआ हो, उनका भी अमावस्या तिथि को ही श्राद्ध करना चाहिए। बाकी तो जिनकी जो तिथि हो, श्राद्धपक्ष में उसी तिथि पर श्राद्ध करना चाहिए। पंडित पुरोहित ने बताया कि इस बार श्राद्धपक्ष में एक तिथि क्षय होगी वहीं शारदीय नवरात्रा में एक तिथि की बढ़ोतरी होग। इस कारण श्राद्ध 16 की बजाए 15 व नवरात्रा 9 के स्थान पर 10 दिन के होंगे। पिछले 427 वर्ष में यह पहरी बर होगा। अश्विन कृष्ण पक्ष में सप्तमी तिथि क्षय होगी लेकिन श्राद्ध तृतीय व चतुर्थी तिथि का एक दिन 19 सितम्बर को निकाला जाएगा। गया तीर्थ के श्राद्ध का फल देने वाला भरणी का श्राद्ध 20 सितम्त्बर को होगा। फोटो : राजेश छंगाणी

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