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बीकानेर (हैलो बीकानेर)। चिट्ठी ना कोई सन्देश जाने वो कौन सा देश जहाँ तुम चले गए…. 4 फरवरी 1984 को जब बीकानेर के पुष्करणा ब्राह्मण परिवार में एक नन्हे से बालक ने जन्म लिया तब शायद ये कोई नहीं जानता होगा की ये नन्हा बालक बड़ा होकर इंडियन आयडल बनने वाला है। बीकानेर की तंग गलियों से निकल कर एक चेहरा सीधा हमे टेलीविजन देखेने को मिला जी हां वो नाम था…

संदीप आचार्य (इंडियन आयडल-2)

लेकिन 15 दिसम्बर 2013 को देश के करोड़ों लोगों की दुआओं से बने कलाकार की दरकार भगवान को पड़ गई! संदीप को बुला लिया। और संदीप। हम सभी का चहेता। कलेजे का टुकड़ा। चला भी गया! ऐसे कोई जाते हैं भला? बावळे! गीत तो पूरा गा के जाता। हम भी तेरे मुरीद थे। सिर्फ तेरी स्वर लहरियों के नहीं। इससे भी ज्यादा तेरी निश्छल मुस्कान के। तेरे अंदर बैठे इंसान के। और तू उस भगवान के बुलावे पर चला गया? हां, हमें पता है कि तूने इंडियन आयडल जीतने के बाद आए पहले एलबम ‘मेरे साथ सारा जहां…Ó में ही कह दिया था कि ‘जाना है मुझको, जाना है यार आगे उन आसमानों से, वाकिफ नहीं है कोई यहां, मेरी अजनबी उड़ानों से, मेरे जैसा कोई कहां, मेरे साथ सारा जहां..!Ó तेरा अवचेतन तो तब ही मुखर हो चुका था। आज माना, तुमने सच कहा कि हम तेरी अजनबी उड़ानों से वाकिफ नहीं थे।

वाकई संदीप! हम तेरी अजनबी उड़ानों तक पहुंच ही नहीं पाए लेकिन तूने तय कर रखा हो जैसे। हम तुझमें एक बहुत बड़ा गायक देख रहे थे। एक ऐसा गायक जो नायक के लिए गाने गाए। ऐसे गाने गाए कि पहचाना जाए। यही वजह थी कि एक-दो महीने भी अगर तेरे किसी एलबम या स्टेज शो की खबर नहीं आती तो रुआंसे हो जाते। सोचते कहीं ऐसा नहीं हो कि बॉलीवुड की सुरसा तुझे भी निगल ले। चिंता लाजिमी थी। बॉलीवुड में फेल होने वाले बहुतेरे थे लेकिन तू तो जैसे इन सभी के लिए बना ही नहीं था। हमेशा स्थितप्रज्ञ दिखा। निर्लिप्त लेकिन कर्मशील रहा। महत्वाकांक्षाओं से अप्रभावित। सफलता की चकाचौंध से दूर। सब से परे। जो चुनौती मिली, उसे स्वीकार किया। पूरा किया। आगे बढ़ गया। किसी ने कह दिया कि इंडियन आयडल संगीत की प्रतिभाओं की कसौटी है तो उसे भी जीत आया। माइकल जैक्सन के परिवार के साथ भी गा आया।

बॉलीवुड की दूसरी हस्तियों की क्या बात हो जब अमिताभ बच्चन और सलमान खान के साथ तुम खड़े दिखाई दिए। इतना कम समय और इतना सब कुछ! नाम, शोहरत, पैसा और प्रभाव। हम यह सब देखकर खुश होते रहे। रोमांच से भरते रहे। इसी में उलझे रहे। दुनियावी लोग हैं ना! लगा तुम गाते हो तो बड़े गायक बन जाओ। बहुत नाम करो। हम तुमसे पहचाने जाएं। हमारी हसरतें भी थी ऐसी ही । इतनी-सी। एक कलाकार के मन तक वैसे भी कौन पहुंच पाया है भला? सो, हम तुम्हारे अंदर बैठे व्यक्ति तक पहुंच ही नहीं पाए कि तुम चले गए। यकीन करो संदीप! हमने तो अभी तक तुम्हें जी-भर सुना भी नहीं था। ऐसे में यह शिकायत तो रहेगी ही कि ‘बहुत गौर से सुन रहा था जमाना, तुम्ही सो गए दास्तां कहते-कहते..।

सच है कि आज हमारे बीच संदीप नहीं है। एक सितारा अपने पूर्ण प्रकाश के साथ चमका और बीकानेर को रोशन कर गया। अंतरराष्ट्रीय मंच पर बीकानेर का नाम रोशन कर गया। हमें गर्व करने का मौका दे गया। भुजिया-पापड़ के लिए पहचान बनाने वाले इस शहर को सुरलहरियों के लिए प्रसिद्ध कर गया। और आज उसके नहीं होने पर भी हजारों नवोदित कलाकार आत्मविश्वास से लबरेज हैं तो वजह संदीप है। संदीप के इंडियन आयडल प्रतियोगिता जीतने के बाद ही इस शहर के कलाकारों को लगा कि आजमाइश में उतरना चाहिए। यहां यह कहें तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यह संकोची-सा युवक शहर के हजारों युवाओं की झिझक मिटा गया। लोग आगे बढने लगे। रीयलिटी-शो में दिखने लगे। स्टेज पर परफॉर्म करने लगे।

आज संदीप हमारे बीच नहीं हैं लेकिन संभावना भरे हजारों दीप उसकी लौ से प्रकाशित हैं। प्रेरणा इसी को कहते हैं। प्रेरणा बनने वाले लोग दो तरह के होते हैं। लोग कुछ बन जाने के बाद अनुयायी बनाते हैं-गुरुत्व हासिल करते हैं। कुछ लोग अपने निर्माण की प्रक्रिया में ही मागदर्शक जैसा आभा-मंडल अर्जित कर लेते हैं। बहुत ही सामान्य से भाव और विचारों के साथ ये लोग न सिर्फ स्वयं आगे बढते हैं बल्कि अपने साथ वालों के लिए भी राह बनाते हैं। संदीप दूसरी तरह के लोगों में से था। वह न सिर्फ खुद आगे बढ़ा बल्कि अपने साथ वालों को भी आगे बढऩे में सहयोग किया। यही वजह है एक छोटी-सी अवधि में उसने स्मृतियों के इतने वातायन खोल दिये कि आज हर ओर उदासी है। आंसू है। अभाव है। अनमनापन है। – हरीश बी शर्मा (साभार : पुष्करणा जगत) 

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