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हैलो बीकानेर। शहर बीकानेर, अपनी ही मस्ती में जीने वाला यह शहर हर त्यौहार को अपने अलग ही अंदाज से मनाता है। यहां की होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यहां जिस तरह से त्यौहार मनाये जाते है उसकी बात ही कुछ निराली है। अगले महिने यानि 7 नवंबर को दिवाली है तो बीकानेर शहर अब इस त्यौहार कैसे अपने अंदाज में मनाता है आज हम आपको यह बताते है। चलो आप को एक वाक्या सुनाते है ……

एक दिन मै बीकानेर के किसी चौक से गुजर रहा था वहां पर कुछ बच्चे पटाखे जला रहे थे। बच्चो का समूह एक के बाद एक पटाखे जला रहे थे और खुब मस्ती कर रहे थे। बच्चों के चहरे की मुस्कान मुझे अपने बचपन की याद दिला रहा था। इतने में एक जोर से आवाज आई ’ओ फटाखों कूण छोडियों’ सब बच्चे इधर-उधर देखने लगे।

इतने मे एक घर से एक लगभग 60/65 वर्ष का व्यक्ति घर से निकला और उसने जोर-जोर से चिल्ला कर पूछ रहा था कि ’ओ फटाखों कूण छोडियों’ मेरी नजर उन बच्चों की तरफ घुमी तब तक सारे बच्चे वहां से गायब हो चुके थे। जो व्यक्ति घर से बाहर निकला था उसके चेहरे का गुस्सा यह साफ बता रहा था कि उसको फटाकों की आवाज पसंद नहीं। व्यक्ति का गुस्से में जोर-जोर से एक ही आवाज लगा रहा था ’ओ फटाखों कूण छोडियों’….. ’ओ फटाखों कूण छोडियों मुझे कुछ समझ में नहीं आ रहा आखिर हो क्या गया ऐसा कि यह व्यक्ति इतना गुस्सा हो रहा है।

इतने में उस व्यक्ति ने राह चलते बच्चे को पकड़ा और पूछा कि ’ओ फटाखों कूण छोडियों’ बच्चा बोला कि मुझे क्या पता। आस-पास के लोगों के चहने की मुस्कान मेरी और परेशानी बढा रही थी। आखिर ये लोग हंस क्यो रहें है। मुझ से रहा नहीं गया और मैने भी एक व्यक्ति से पूछ ही लिया आखिर हुआ क्या। उस व्यक्ति का जवाब भी बड़ा विचित्र था वा बोला ‘दिवाली आयगी नी अबै तो थे रो सूणा ’ओ फटाखों कूण छोडियों’…. और हंस कर चल दिया। व्यक्ति का गुस्सा शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था। मेरी उलझने बढती जा रही थी कि पटाखे तो उन बच्चो ने जलाये लेकिन वो बच्चे कही नजर नहीं आ रहे सब के सब गायब हो गये।

आखिर वो व्यक्ति एक पास की ही पटाखों की दुकान पर पहुंचा और उसने दुकानदार से पुछा कि तूने पटाखे किस को दिये। दुकानदार ने हसंते हुवें कहा दिन भर में कई लोग यहां से पटाखे खरीदते है अब किस किस का नाम याद रखें। उस चौक के सभी लोग हंस रहे थे और वो व्यक्ति गुस्से से चिल्ला रहा था ’ओ फटाखों कूण छोडियों’…… कुछ बच्चों को उसने डांट भी लगाई। बच्चों पर जैसे उसकी डांट का कुछ असर हो ही नहीं रहा था बच्चे जोर-जोर से हंस रहे थे थोडी देर बाद वो भी बच्चों के साथ हंसने लगा। यह दृश्य देख मेरे चेहरे पर भी हंसी आ गई और मैं वहां से चला गया। लेकिन एक सवाल अब भी मन था कि… ’ओ फटाखों कूण छोडियों’.…. यही है अलबेला मस्ताना शहर बीकानेर और यहां के लोग। ऐसी ही कुछ और कहानियां लेकर हैलो बीकानेर आपके साथा फिर होगा जल्द ही। – राजेश के ओझा 

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