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ख़बर सर्किल – राजेश के ओझा 

 

बीकानेर में दिवाली पर खेले जाने वाले जुए को परम्परा का नाम कब तक दिया जायेगा ? जुआ रोका क्यों नहीं जा सका? पुलिस क्या कर रही थी? सवाल तो और भी सामने आये लेकिन हुआ यूँ की दिवाली से लगभग 10 दिन पहले और दिवाली के दो दिन बाद तक बीकानेर में खुल्लेआम जुआ खेला गया।

 

कही कही पुलिस ने दबिस भी दी लेकिन वो सिर्फ खानापूर्ति सी नज़र आई क्युकी बीकानेर शहर के अंदरूनी इलाके में बेखोफ चलता रहा जुआ, जिन लोगों के घर के आगे जुआ खेला गया वो लोग सोशल मीडिया पर पोस्ट कर अपनी नाराजगी दर्ज करवाते रहे। बच्चे, बुजुर्ग हो या युवा वर्ग सभी एक साथ जुआ खेल रहे थे। कई घरों में इस जुए को लेकर कलह भी हुआ, झगड़े भी हुए, लेकिन जुआ चलता रहा, सवाल अब यह है की आखिर किस कारण इस जुए को रोका नहीं गया?

 

दिवाली से पहले तो पटाखा व्यापारी धरने देते नज़र आये क्युकी उनको पटाखे लगाने वाली दुकानों के लाइसेंस मिल नहीं रहे थे फिर सामने आया की दुकाने शहर के बाहर लगेगी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं दुकाने हर साल की जगह ही लगी। लेकिन इस बार पटाखों के दामों ने जोरदार धमाका किया। दाम इतने ज्यादा थे की कई बच्चों को कम पटाखे जलाकर दिवाली मनानी पड़ी तो कईयों को सिर्फ जलते पटाखे देखकर, दाम तो बढ़ने तय थे क्युकी डिमांड जो थी, अब दिवाली पूजन पर काम आने वाले मतीरे को भी देख लीजिये ये भी 100-150 रूपये तक बिका, तो फिर पटाखों के दामों में धमाका तो होना ही था।

 

कुछ देर के लिए ही सही WhatsApp बंद क्या हुआ लोगों के होश उड़ से गए। दिवाली के बाद रामा श्यामा करने का रिवाज है लेकिन ये अब बच्चो तक सिमित रह गया लोग दिवाली के बाद रामा श्यामा सोशल मीडिया पर ही एक दुसरे को सन्देश भेज कर कर रहे थे। समझने की बात है की जो काम हमारे पूर्वजों ने शुरू किया उसके पीछे कोई तो कारण जरुर रहा होगा। एक दुसरे के घर जाकर दिवाली के बाद रामा श्यामा करने से उनसे मुलाकात हो जाती है क्युकी साल भर लोग एक दुसरे से मिलते तक नहीं, लेकिन सोशल मीडिया ने ये दूरी फिर से कायम कर दी।

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