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अब्दुल वाहिद. सादिक़ अली और महबूब. इन तीन के नाम बाकियों के लिए शायद आम होंगे लेकिन अयोध्या के लिए खास हैं. क्योंकि ये तीनों वहां अस्थायी परिसर में बैठे रामलला की सार-संभाल में करीब-करीब रोज अपनी अहम भूमिका निभाते हैं. वह भी बीते दो दशक से लगातार. अयोध्या से जुड़े विवाद में जब सुप्रीम कोर्ट मंगलवार से ही आखिरी सुनवाई शुरू कर रहा है तभी द टाइम्स ऑफ इंडिया ने थोड़ी बेहतरी की उम्मीद जगाती इन तीनों से जुड़ी एक ख़बर प्रकाशित की है. और फिर छह दिसंबर बुधवार को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाए जाने की बरसी भी है.

अब्दुल वाहिद 38 साल के हैं. वेल्डिंग का काम करते हैं. जब कभी भी भारी बारिश या तूफान वग़ैरह की वजह से रामलला के अस्थायी परिसर के इर्द-गिर्द लगी कटीली तारों की बाड़ क्षतिग्रस्त हो जाती है तो अब्दुल को ही याद किया जाता है. इस बाड़ की नियमित देखरेख और रखरखाव के लिए उन्हें लोकनिर्माण विभाग से रोज 250 रुपए मिलते हैं. ऐसे ही सादिक़ अली. कुर्ता, पाजामा पगड़ियां वगैरह बनाते हैं. और इसके साथ रामलला की पोशाक भी. राम जन्मभूमि मंदिर के मुख्य पुजारी के निर्देश पर एक-दो महीने के अंतराल में सालों से रामलला के वस्त्र सादिक़ के हाथ से ही बनकर पहुंचते हैं.

और तीसरे सादिक़ के दोस्त महबूब. बिजली का काम करते हैं. सबसे पहली बार 1995 में महबूब ने तीन फेस की मोटर के जरिए सीता कुंड के पास बनी रसोई के लिए पानी का इंतजाम किया. इसके बाद तो वे रामलला परिसर सहित अयोध्या के लगभग सभी मंदिरों में बिजली आदि की व्यवस्था देखने लगे. आज भी वे यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि रामलला परिसर में 24 घंटे रोशनी की व्यवस्था सुनिश्चित रहे. तीनों को इस बात फ़ख़्र है कि वे अपने हिंदू भाइयों के साथ मिलकर रामलला की सेवा में थोड़ा योगदान दे पा रहे हैं. तीनों मानते हैं कि ख़ुदा या भगवान में कोई फ़र्क़ नहीं है और यह भी कि आतंकवाद या दहशतग़र्दी का कोई मज़हब नहीं होता.

सुप्रीम कोर्ट में आज से अंतिम सुनवाई शुरू

अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार से अंतिम सुनवाई शुरू हो रही है. शीर्ष अदालत 2.77 एकड़ विवादित जमीन के मालिकाना हक़ के बारे में सभी पक्षों की दलीलें सुनने वाली है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच इस केस में अब रोज सुनवाई करेगी. इस बेंच जस्टिस अशोक भूषण और एस अब्दुल नजीर सदस्य हैं. शीर्ष अदालत चार दीवानी मुकदमों में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के 2010 के फैसले के खिलाफ दायर 13 अपीलों पर सुनवाई करेगी.

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को इस मामले में फैसला दिया था. इसमें कहा था कि विवादित जमीन को तीन बराबर हिस्सों में बांटा जाए. जिस जगह रामलला की मूर्ति है उसे रामलला विराजमान को दिया जाए. सीता रसोई और राम चबूतरा निर्मोही अखाड़े को दिया जाए. जबकि बाकी एक तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए. साभार : सत्याग्रह

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