बीकानेर hellobikaner.in भरभोलिए गाय के गोबर से बने ऐसे उपले होते हैं जिनके बीच में छेद होता है। इस छेद में मूँज की रस्सी डाल कर माला बनाई जाती है। एक माला में सात भरभोलिए होते हैं। होलिका दहन में आग लगाने से पहले इस माला को भाईयों के सिर के ऊपर से सात बार घूमा कर फेंक दिया जाता है।
रात को होलिका दहन के समय यह माला होलिका के साथ जला दी जाती है। इसका यह आश्य है कि होली के साथ भाईयों पर लगी बुरी नजर भी जल जाए। भारतीय जन मानस व संस्कृति में गाय के गोबर का अपना विशेष महत्व है। होली पर भी इसका महत्व देखने को मिलता है। किसी समय जब घर घर में गाय हुआ करती थी उस समय होली के दिनों में दोपहर में घर की महिलाएँ उपले और भरभोलिए बनाती थी लेकिन बदलते परिवेश ने इसमें फर्क डाला है। बीकानेर शहर में घर की महिलाएं घर में ही भरभोलिए बनाती है।
आज घर घर में गैस के चूल्हों ने जगह बना ली है और गाय का गोबर उपयोग में नहीं आता है। इस कारण भरभोलियों को घर में बनाना संभव नहीं हैं। लेकिन होली के अवसर पर इन्हें दूकान से भी ख़रीदा जा सकता है। इन भरभोलियों का राजस्थान में बहुत प्रचलन है। बीकानेर के कई जगहों पर होली के अवसर पर भरभोलियों की बिक्री परवान पर चढ़ती है।