हैलो बीकानेर न्यूज़ नेटवर्क, www.hellobikaner.com, बीकानेर। राजस्थानी के पुरोधा साहित्यकार अन्नाराम सुदामा राजस्थानी में आधुनिक साहित्य की शुरूआत की है। उनका लेखन आसपास की घटनाओं पर आधारित है और आम आदमी के जीवन को सीधे कागज पर उतारने वाला है। हर पढ़ने वाला ये समझता है कि उसके आसपास का ही घटनाक्रम है। उन्होंने हर विधा में समाज को दिशा देने का काम किया है। साहित्य अकादेमी नई दिल्ली की ओर से आयोजित दो दिवसीय अन्नाराम सुदामा जन्मशती संगोष्ठी के दूसरे दिन पत्रवाचन में ये ही तथ्य सामने आए। राजस्थानी साहित्यकारों ने अन्नाराम सुदामा पर दो अलग-अलग सत्रों में पत्रवाचन किया।
राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादेमी के अध्यक्ष शिवराज छंगाणी ने समापन सत्र में कहा कि अन्नाराम का साहित्य देश की धरोहर है। उन्होंने अन्नाराम के साथ गुजारे वक्त को याद करते हुए कहा कि वो हर रोज सृजन करते थे। हर रोज लोक के बीच में जीते थे। ये ही कारण है कि उनकी कहानियों में लोक जीवन ही नजर आता है। साहित्य अकादेमी नई दिल्ली के पूर्व संयोजक मधु आचार्य आशावादी ने कहा कि राजस्थानी में आधुनिक लेखन का श्रेय उनको ही जाता है। अन्नाराम सुदामा को पढ़ने के लिए नई पीढ़ी को उनका संग्रह चाहिए। ये काम उनके परिवार को करना चाहिए कि गद्य और पद्य में उनका अलग अलग संकलन प्रकाशित होना चाहिए। इस सत्र का संचालन नगेंद्र किराडू ने किया।
इससे पहले तीसरे सत्र में विख्यात साहित्यकार मदन सैनी ने सुदामा के उपन्यासों के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि उपन्यास सिलेसिलेवार समाज के दोनों पक्षों को सामने लाते है। जो पक्ष सकारात्मक है और जो पक्ष विपक्ष में है, उन दोनों के बारे में सीधी बात करते थे। इसी सत्र में गौरीशंकर प्रजापत और सरोज भाटी ने भी उनके उपन्यासों पर पत्रवाचन किया। इस दौरान दोनों साहित्यकारों ने उपन्यास के पात्रों को आसपास का बताया।
पांचवें सत्र व अंतिम सत्र में अन्नाराम सुदामा के यात्रा संस्मरण, नाटक और निबंध पर चर्चा की गई। इस दौरान राजस्थानी व डिंगल के साहित्यकार गजादान चारण ने सुदामा उप नाम पर ही बात की। उन्होंने सुदामा के लिखे कहानी, कविता और निबंध के साथ यात्रा संस्मरण को याद किया। इस दौरान महिला साहित्यकार सेनुका हर्ष ने कहानियों पर बात की। उन्होंने कई कहानियों का जिक्र करते हुए बताया कि अन्नाराम के पास कई दिल थे। वो पशु के मन को भी समझते थे तो जीव जंतु की भाषा भी समझते थे। उनकी कहानियों में वो दर्द है। साहित्यकार सविता जोशी ने सुदामा के राजस्थानी निबंधों पर चर्चा की। उन्होंने सुदामा के निबंधों में उपयोग में लिए शब्दों का विश्लेषण किया।