हैलो बीकानेर (जयनारायण बिस्सा)। कहने को तो राजनीतिक पार्टियां स्वस्थ लोकतंत्र की बात करती है किन्तु जब मामला खुद आन पड़े तो इससे बचती रहती है। कुछ ऐसा ही हाल कांग्रेस का बना हुआ है। जिसमें संगठनात्मक चुनाव भी बीरबल की खिचड़ी की भांति बन गये है और कार्यकर्ताओं को मिल रही है तो सिर्फ तारीख पर तारीख। अक्टुबर के पहले सप्ताह तक संगठनात्मक चुनावों की प्रक्रिया निपटाने का तयशुदा कार्यक्रम था। लेकिन आपसी खींचतान के चलते में ब्लॉक अध्यक्षों व जिलाध्यक्षों की नियुक्तियों को एक बारगी फिर से टाल दिया गया है। लम्बे अर्से से स्थानीय स्तर पर चल रही खींचतान के कारण शहर और देहात जिलाध्यक्षों की नियुक्तियां अटकी बताई जा रही है। राजनीतिक सूत्रों के अनुसार जहां शहर में पूर्व मंत्री डॉ बी डी कल्ला और उनके विरोधियों में टकराहट की स्थिति है वहीं देहात में प्रतिपक्ष नेता रामेश्वर डूडी के भी पूर्व मंत्री वीरेन्द्र बेनीवाल,पूर्व संसदीय सचिव गोविन्दराम मेघवाल व पूर्व विधायक मंगलाराम की तिकड़ी आड़े आये हुए है। इसका विरोध भी दिल्ली दरबार तक जताया जा चुका है। हांलाकि कांग्रेस के आलाकमान ने पीसीसी सदस्यों की नियुक्तियां करके एक बार तो मामला शांत कर दिया है। लेकिन एक पखवाड़ा बीत जाने के बाद भी जिलाध्यक्षों व ब्लॉक अध्यक्षों पर फैसला लेना आलाकमान के लिये टेढ़ी खीर बनता जा रहा है।
संशय में पार्टी आलाकमान
चुनावी साल में किसी भी सूरत में मतदान की नौबत आए और ही कार्यकर्ता एक-दूसरे से टकराव से बचने के लिये केन्द्रीय नेतृत्व ने आम सहमति का रास्ता अपनाने के निर्देश दिये है। जिसको लेकर या तो कांग्रेस एक बार फिर पुराने अध्यक्षों पर ही दांव खेल सकती है। अगर ऐसा नहीं होता है तो किसी उपेक्षित को कांग्रेस की बागडोर सौंपी जा सकती है। लेकिन स्थिति ये बनी है कि आपसी गुटबंदी ने कांग्रेस के लिये संशय बना हुआ है। जिसको लेकर नियुक्तियों में देरी हो रही है।