विशेष आलेख
पृष्ठभूमि: जैसा कि विदित है कोविड- 19 की वजह से सम्पूर्ण स्कूल 20 मार्च 2020 से बंद हो गए। उस समय किसी ने भी यह नहीं सोचा था कि यह बंद लगातार 6 महीने रहेगा या इससे भी आगे जारी रह सकता है। करीब एक माह के बाद कशम-कश की स्थिति में अधिकतर प्रगतिशील स्कूलों ने छोटे शहरों- कस्बों में व्यवस्थितबद्ध तरीके से प्राथमिक से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर की कक्षाओं तक ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने की शुरुआत की जिसका सम्पूर्ण उद्देश्य यह था कि शैक्षणिक सत्र 2020- 21 के अप्रैल माह से कोई छात्र- छात्रा पाठ्यक्रम अथवा शिक्षा से वंचित न रहे।
चुनौतियां व समस्याएं:
- उपकरण का अभाव: बड़ी मुश्किल से 50%छात्रों के परिवारों के पास लेपटॉप, टेबलेट अथवा स्मार्टफोन उपलब्ध हैं। उनके लिए ये संभव नहीं है कि वे 6,000/- से ज्यादा का स्मार्टफोन खरीद सकें। यदि घर के मुखिया के पास एक स्मार्टफोन है भी तो उसे कार्य-वश बाहर जाते समय अपने साथ रखना पड़ता है।
- क्षीण अथवा कमजोर इंटरनेट उपलब्धता: अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में कमजोर इंटरनेट अथवा संचार में अवरोध होने की वजह से अध्ययन-अध्यापन में बाधा बनी रहती है।
- वाई- फाई व अन्य महत्वपूर्ण डाटा सेवाओं को वहन करने में सक्षम न होना।
4.प्रशिक्षित अध्यापकों का अभाव: जैसा कि पहली बार ऑनलाइन शिक्षा की अवधारणा को प्रयोग में लाया गया, अतः अधिकतर शिक्षक लाइव कक्षा अथवा रेकॉर्डिंग के उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्रशिक्षित नहीं थे।
- कमजोर उपस्थिति: अधिकतर अभिभावकों के लिए यह एक बड़ी समस्या रही कि वो अपने बच्चों को उपकरण के साथ जोड़कर उन पर नज़र रख सकें। परिणामस्वरूप 50% बच्चे ऑनलाइन शिक्षा से जुड़ सके।
6.पुस्तकों एवं शैक्षणिक सामग्री का अभाव: अधिकतर अभिभावक इंतज़ार करते रहे कि संभवतः स्कूल जल्दी खुल जाएं, परिणामस्वरूप उन्होंने पाठ्यक्रम की पुस्तकें नहीं खरीदी व न ही छात्रों ने लाइब्रेरी में जाकर संपर्क किया।
7.शैक्षणिक संवाद अभाव:ऑनलाइन शिक्षण के दौरान शिक्षक एवं छात्र के बीच उचित संवाद अथवा सम्प्रेषण स्थापित नहीं हो सका, जो कि अत्यावश्यक है।
- विधुत अवरोध: अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में ऑनलाइन कक्षा को सुचारू रूप से संचालित करने में विधुत अवरोध सबसे बड़ी बाधा रही। आर्थिक रूप से कमजोर होने की वजह से डाटा का बैक-अप रखना उनके लिए एक चुनौती रही।
- ऑनलाइन शिक्षण- शुल्क: ऑनलाइन शिक्षा प्रदान करने वाले स्कूलों के लिए अल्प- शुल्क लेना भी एक सबसे बड़ी समस्या रही। अधिकतर स्कूल अभिभावकों से सामान्य फ़ीस का आधा अथवा रजिस्ट्रेशन शुल्क देने का अनुरोध कर रहे हैं, परंतु रिकवरी रेट 30% भी नहीं है। अधिकतर अभिभावक फ़ीस न देने के बहाने बना रहे हैं। यथा:
(क) जब स्कूल ही बंद हैं तो ऑनलाइन शिक्षण के नाम पर फ़ीस कैसे ली जा सकती है।
(ख) मेरा बच्चा पाठ को अच्छे से समझ नहीं पा रहा है।
(ग) हमारे पास इंटरनेट उपलब्ध नहीं है।
(घ) हमारे पास हार्डवेयर अथवा संसाधन का अभाव है।
(ड़) सरकार की गाईड- लाइन का इंतज़ार कर रहे हैं।
(च) मेरे बच्चे की कोई रुचि नहीं है। वह बीमार है अथवा क्षेत्र से बाहर है।
अगला कदम:
निःसंदेह स्वास्थ्य सबसे पहले है। हम स्वास्थ्य संबंधी मामलों एवं स्कूल संचालन के बीच सामंजस्य बैठा सकते हैं।
- सरकार की भूमिका: शिक्षा राज्य का महत्वपूर्ण विषय है, अतः राज्य सरकार को विभिन्न चरणों में कठोर नियमों के साथ स्कूल खोलने की नीति बनानी चाहिए।
- विकेन्द्रीकरण: कोविड- 19 के प्रसार की तीव्रता को देखते हुए, राज्य सरकार प्रत्येक जिले में प्रशासन को शक्ति प्रदान करे, जिससे कोविड से मुक्त तहसील क्षेत्रों में स्कूल खोलने की अनुशंसा की जा सके।
- स्कूलों की भूमिका: स्कूलों को निम्न नियमों की अनुपालना करनी चाहिए:
(क) 3 फ़ीट की सामाजिक दूरी के साथ बैठक व्यवस्था।
(ख) प्रार्थना सभा पर पूर्ण रोक।
(ग) स्कूल आगमन एवं प्रस्थान का नियोजित समय।
(घ) स्कूल में प्रवेश के समय प्रत्येक शिक्षक व छात्र की स्कैनिंग व उन्हें सैनिटाइज किया जाए।
(ङ) ऐसे मास्क को पहनना अनिवार्य हो जिससे सांस लेने में परेशानी न हो। हालांकि यह लागू करना मुश्किल है।
(च) स्कूल संचालन की अवधि 3 घंटे से अधिक न हो।
(छ) क्रमानुसार उच्च स्तर से प्राथमिक स्तर तक शिक्षण व्यवस्था लागू की जाए। इसके साथ- साथ ऑनलाइन व ऑफलाइन कक्षा समानुपात में संचालित की जाए।
(ज) यदि कक्षाओं का अभाव है तो कम छात्र संख्या के साथ आनुपातिक रूप में इनका प्रयोग किया जा सकता है।
( झ) 15 मिनट के अंतराल के दौरान खाने के टिफिन को बांट कर न खायें।
राज्य सरकार इस बात को अपने संज्ञान में ले कि कि ऑनलाइन शिक्षण प्रदान करने वाले स्कूल कुल फ़ीस का 50% ले सकते हैं। जो अभिभावक इसमें सक्षम नहीं है, वो तीन महीने में तीन किश्तें अथवा सुविधानुसार स्कूल को निर्धारित शुल्क दे सकते हैं, जिससे ऑनलाइन शिक्षण सुचारु रूप से जारी रह सके ।
निष्कर्ष: सावधानी के साथ हमे आगे बढ़ना है। यह एक अल्पकालिक समस्या है। दिसंबर के अंत तक वैक्सीन आने की संभावना है। अभी कुछ प्रभावशाली दवाइयां आना शूरू हो गयी हैं। आईये हम प्रयास करें, हमारे बच्चों का महत्वपूर्ण एक साल बर्बाद न हो।
– श्री वर्धन मोहता
प्रमुख उद्योगपति एवम् चेयरमैन
मोहता ग्रुप ऑफ एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स