नई दिल्ली । जानबूझकर ऋण नहीं चुकाने वालों के विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई किये जाने, कथित ग्राहक विरोधी बैंकिंग सुधार, सरकारी बैंकों के निजीकरण रोकने और बैंकों के विलय बंद करने की मांग करते हुये बैंक संघों के संयुक्त फोरम ने शुक्रवार को यहाँ प्रदर्शन करने का ऐलान किया है।
बैंक संघों के संयुक्त फोरम के बैनर तले आयोजित किये जा रहे इस प्रदर्शन में सरकारी बैंकों के कर्मचारी और अधिकारी भाग लेंगे। ऑल इंडिया बैंक कर्मचारी संघ के महासचिव सी.एच. वेंकटचलम् ने फोरम द्वारा आयोजित संवाददाता सम्मेलन में कहा कि यह प्रदर्शन कर्मचारियों के हितों के लिए नहीं बल्कि राष्ट्रहित में किया जायेगा।
उन्होंने कहा कि सरकारी बैंकों के मुनाफे से अधिक राशि का प्रावधान गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) के लिए किया जा रहा है जबकि बैंकों को अगले कुछ वर्षाें में 1.80 लाख करोड़ रुपये की जरूरत है। उन्होंने कहा कि पिछले तीन वर्षाें में सरकारी बैंकों ने 1.75 लाख करोड़ रुपये से अधिक राशि सरकार को लाभांश, आयकर और दूसरे कर के रूप में दी है, लेकिन सरकार पाँच साल में मात्र 70 हजार करोड़ रुपये निवेश कर रही है और बैंकाें को अतिरिक्त पूंजी के लिए विनिवेश का सहारे छोड़ दिया गया है।
श्री वेंकटचलम ने कहा कि करीब आठ लाख करोड़ रुपये के एनपीए में से 80 प्रतिशत राशि मात्र 89 बकायेदारों पर है और अधिकांश बकायेदार जानबूझकर ऋण नहीं चुका रहे हैं। उन्होंने कहा कि जानबूझकर ऋण नहीं चुकाने वालों के विरुद्ध आपराधिक कार्रवाई की जानी चाहिये। इसके साथ ही बैंकों के निदेशक मंडल को एनपीए के मामलों में जिम्मेदार बनाया जाना चाहिये क्योंकि उनकी मंजूरी के बैगर कोई बड़ा ऋण स्वीकृत नहीं होता है। निदेशक मंडल में रिजर्व बैंक के प्रतिनिधि और सरकार के प्रतिनिधि भी शामिल होते हैं।
उन्होंने सरकारी बैंकों द्वारा सेवा शुल्क और जुर्माना आदि वसूले जाने की कड़ी आलोचना करते हुये कहा कि बड़े उद्यमियों के ऋण जब माफ किये जा रहे हैं तब आम ग्राहकों पर सेवा शुल्क बढ़ाचढ़ा कर वसूलना उचित नहीं है। इसके मद्देजनर सेवा शुल्क और जुर्माना आदि को वापस लेने की मांग की जा रही है। इन मांगों काे लेकर शुक्रवार को राजधानी दिल्ली में रामलीला मैदान से संसद मार्ग तक प्रदर्शन किया जायेगा।