हैलो बीकानेर,। नाटक जीवन जीने कि कला है.यह व्यक्ति में निष्ठा और प्रतिबद्धता का विकास करता है जिससे व्यक्ति जीवन के सभी छेत्रों में सफलता प्राप्त कर सकता है ।भारत के रंगमंच को सरकारी आश्रय की जरुरत नहीं वरन समाज के आश्रय की जरुरत है। जिस दिन समाज रंगमंच को अपना लेगा उस दिन देश का रंगमंच पूरी दुनिया में अपना स्थान बना लेगा।ये विचार आज कादम्बिनी क्लब, बीकानेर द्वारा होटल मरुधर हेरिटेज में भारत के रंगमंच की दशा और दिशा पर आयोजित विचार गोष्टी में सुप्रशिध रंगकर्मी,कवि कथाकर और पत्रकार श्री मधु आचार्य आशावादी ने प्रकट किये। उन्होंने कहा कि वर्तमान नाटक की दशा तो ठीक है लेकिन दिशा भटक रही हैं इसलिए नाटक कि दिशा को टीक करने हेतु रंगकर्मियों को आगे आना चाहिए।
गोष्टी मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार प्रकट करते हुए युवा रंगकर्मी राम सहाय हर्ष ने कहा कि रंग कर्म राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देंने का प्रभावी माध्यम है। कलाकार परस्पर प्रेम और सद्भाव से कार्य करते हैं और अपने नाटकों में भी आपसी भाई चारा और सद्भाव बढाने का सन्देश देते हैं । उन्होंने बीकानेर के रंगमंच के कलाकारों का देश के रंगमच में उल्लेखनीय योगदान का जिक्र किया। उन्होंने कहा की बीकानेर के रंगकर्म की एक समृद्ध परम्परा रही है जिसको आज और समृद्ध करने की आवश्यकता हैं। गोष्ठी की अधक्ष्ता करते हुवे वरिष्ठ रंगकर्मी श्री बी.एल. नवीन ने कहा कि रंगकर्म समाज में जाग्रति पैदा करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करता है। उन्होंने बीकानेर के रंगकर्म के विगत 50 वर्षों की यात्रा का विवेचन किया और और अपने नाटक से जुड़े अनुभवों को साझा किया।
गोष्ठी के प्रारंभ में विषय प्रवर्तन करते हुए कादम्बिनी क्लब के संयोजक प्रो.(डॉ.) अजय जोशी ने कहा कि रंगमंच का साहित्य और संस्क्रति के गहरा जुड़ाव हैं।यह साहित्य को जन जन तक विजुअल रूप से पहुंचाने में अपनी प्रभावी भूमिका का निर्वाह करता हैं। दुनिया भर में रंमंच के विकास और विस्तार के २७ मार्च १९६१ से ही विश्व रंगमंच दिवस मनाया जाता है रहा है इस दिन रंगमंच से जुड़े लोग रंगमंच के स्वरूप और संभावनाओं पर चर्चा करते हैं। अथिथियों का स्वागत करते हुए क्लब के सह संयोजक प्रो.(डॉ.) नरसिंह बिनानी ने कहा कि रंगमंच हमारे जीवन का अभिन्न अंग है.हमसब किसी न किसी रूप में अभिनेता हैं हम अलग अलग समय अलग भूमिकाओं में काम करते हैं.कार्यक्रम कि समन्वयक डॉ. रेणुका व्यास ने इस गोष्ठी का संयोजन करते हुवे कहा कि हमारे वेद और पुराणों में रंगकर्म को पूरा महत्त्व दिया गया हैं यह मनुष्य कि आत्मा की आवाज़ को प्रकट करने का माध्यम हैं. कवि कथाकार और रंगकर्मी राजाराम स्वर्णकार ने कहा कि बीकानेर के रंगकर्मियों ने अपनी लगन और निष्ठा से रंगकर्म को नई दिशा दी हैं। वरिष्ठ साहित्यकार सरदार अली पडिहार ने कहा कि रंगकर्म का आध्यात्म से सीधा सम्बन्ध है। अभिनय प्रतिभा भगवान् की देन हैं. कवि कथाकार श्री नरसिंह भाटी ने कहा कि रंगमंच के विकास और विस्तार में रंगकर्मियों की प्रभावी भूमिका होती है.वरिष्ठ संगीतकार और संगीत भारती के निदेशक डॉ. मुरारी शर्मा ने कहा कि नाटक और संगीत एक दुसरे के पूरक हैं संगीत के बिना नाटक अधुरा ही है संगीत और नाटक दोनों ही व्यक्ति के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं।
इस गोष्टी में महेंद्र शर्मा, भंवर लाल बडगुजर,कवि प्रदीप कुमार,अजीत राज,शिव शंकर व्यास,डॉ. संजू श्रीमाली,मोहन लाल जांगिड, डॉ.प्रकाशचन्द्र शर्मा,शैलेन्द्र सरस्वती आदि सहित कई वक्ताओं ने भरत के रंगमंच कि दशा और दिशा के विविध आयामों पर चर्चा की.इस गोष्ठी में हास्य कवि बाबूलाल छगानी,व्यवसायी हेम चंद बांठिया, श्रीमती कृष्ण वर्मा,श्रीमती सरोज भाटी,अब्दुल जबार बिकान्वी,प्रो बी आर चौधरी, मुरली मनोहर के माथुर सहित समाज के विभिन्न वर्गों के विचारकों ने सहभागिता की। कार्यक्रम का संयोजन डॉ. रेणुका व्यास ने किया और आभार ज्ञापन श्री राजाराम स्वर्णकार ने किया।